लोकसभा चुनाव के बाद अचानक एक्टिव हुआ RSS? क्या है संघ की समन्वयक बैठक, क्या होता है इसमें
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ताबड़तोड़ बैठकें कर रहा है. उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक संघ की समन्वय बैठकें बुलाई जा रही हैं.
कुछ दिन पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत की यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बंद दरवाजे के पीछे मुलाकात हुई थीय राजनीतिक जानकार इन बैठकों को लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन और कई राज्यों में खींचतान से जोड़कर देख रहे हैं. पर संघ के पदाधिकारी बैठकों को रूटीन मीटिंग करार दे रहे हैं.
आइये समझते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की समन्वय बैठक है क्या, इसमें होता क्या है, कौन भाग लेता है और क्या हैं इसके मायने?
क्या अचानक एक्टिव हुआ संघ?
आरएसएस को करीब से जानने वाले और ऑर्गेनाइजर मैगजीन के संपादक प्रफुल्ल केतकर hindi.news18.com/ को बताते हैं कि समन्वय बैठक, संघ के रूटीन कार्य में शामिल है. समन्वय बैठक मुख्यत: दो तरीके की होती है. पहला है क्षेत्रीय अथवा प्रांत स्तर की और दूसरा राष्ट्रीय स्तर की, जिसे अखिल भारतीय समन्वय बैठक भी कहते हैं. केतकर बताते हैं कि संघ का पूरे साल का शेड्यूल लगभग निर्धारित होता है. जिसकी शुरुआत मार्च के आसपास प्रतिनिधि सभा से होती. इसके तुरंत बाद प्रांत अथवा क्षेत्रीय समन्वय बैठकें आयोजित होती हैं. फिर राष्ट्रीय समन्वय बैठक का आयोजना होता है. इसके बाद दीपावली के आसपास संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक होती है.
समन्वय बैठक में कौन शामिल होता है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की समन्वय बैठक में उसके 36 सहयोगी या अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारी भाग लेते हैं. जिसमें बीजेपी के साथ-साथ स्वदेशी जागरण मंच, शिक्षण मंडल, सेवा भारती जैसे तमाम संगठन शामिल हैं. राष्ट्रीय स्तर की समन्वय बैठक में संघ के अखिल भारतीय पदाधिकारी, जैसे- सरसंघचालक, सरकार्यवाह शामिल होते हैं. अनुषांगिक संगठनों की तरफ से उसके अध्यक्ष और संगठन महामंत्री शामिल होते हैं. उदाहरण के तौर पर संघ की राष्ट्रीय समन्वय बैठक में बीजेपी की तरफ से पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष शामिल होंगे.
राष्ट्रीय समन्वय बैठक में कई बार सह संगठन मंत्रियों को भी बुलाया जाता है. इसी तरह, क्षेत्रीय अथवा प्रांत स्तर की समन्वय बैठक में आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचारक और अगर किसी राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी का उस क्षेत्र में दायित्व है तो वो शामिल होते हैं. इसके अलावा अनुषांगिक संगठनों के अध्यक्ष और संगठन मंत्री हिस्सा लेते हैं. प्रफुल्ल केतकर कहते हैं कि कई बार राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समन्वय बैठकों के अलावा विभाग समन्वय बैठक भी होती हैं. इसके अलावा यह भी जानना जरूरी है कि संघ की प्रतिनिधि सभा, राष्ट्रीय समन्वय बैठक और प्रांत अथवा क्षेत्रीय समन्वय बैठकों में उससे जुड़े संगठन के पदाधिकारी बुलाए जाते हैं. पर कार्यकारिणी की बैठक में सिर्फ संघ के पदाधिकारी ही शामिल होते हैं.
संघ की समन्वय बैठक में क्या होता है?
RSS की समन्वय बैठक में मुख्य तौर पर दो तरह के मुद्दों पर चर्चा होती है. पहला- ऐसे मुद्दे जो देशहित से जुड़े हैं और दूसरा संगठन की नीतियों से जुड़े मामले. संघ का प्रत्येक संगठन इस बैठक में अपनी-अपनी बात रखता है. इसके बाद एक आम राय बनाकर आगे बढ़ने की राह तय की जाती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि हम अमूमन ऐसी धारणा है कि समन्वय बैठक में आरएसएस, बीजेपी से रिपोर्ट कार्ड लेता है. पर ऐसा नहीं है. संघ भाजपा के काम में सीधे दखल नहीं देता है, मार्गदर्शन जरूर करता है. वह कहते हैं कि राष्ट्रीय समन्वय बैठक, प्रांत अथवा क्षेत्रीय समन्वय बैठकों के बाद होती है.
जिसमें प्रांत प्रचारक, क्षेत्रीय संगठन मंत्री जैसे पदाधिकारी होते हैं. उस बैठक में क्षेत्र अथवा प्रांत के मुद्दों पर चर्चा होती है. फिर उन पदाधिकारियों के जरिए संबंधित प्रांत अथवा क्षेत्र के मुद्दे अखिल भारतीय बैठक में आते हैं. इन पर विचार किया जाता है, कोई शंका है तो उसे दूर करने का प्रयास होता है.
लोकसभा चुनाव के बाद पहली राष्ट्रीय समन्वय बैठक
संघ की राष्ट्रीय समन्वय बैठक इसी महीने 31 जुलाई से 2 अगस्त तक केरल के पलक्कड़ में प्रस्तावित है. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हो रही राष्ट्रीय बैठक बहुत अहम मानी जा रही है. इस बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की सीटें घटने से लेकर राज्यों में तनातनी की खबरों पर चर्चा हो सकती है. सरकार में शामिल दूसरी पार्टियों की मांगों पर भी विचार-विमर्श हो सकता है. संघ की पिछली समन्वय बैठक पुणे में हुई थी. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इस बार बैठक के लिए रणनीतिक तौर पर केरल को चुना गया है, क्योंकि पहली बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां अपना खाता खोलने में कामयाब रही है. इस बैठक के जरिए संघ और बीजेपी साउथ को भी एक संदेश देना चाहते हैं.