2 साल की मेहनत, तुगलक-टाइम मैग्जीन में छपे लेख और PMO को खत…तब जाकर मोदी सरकार को मिला ‘सेंगोल’

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नरेंद्र मोदी सरकार ने 14 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को अंग्रेजों द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक ‘सेंगोल’ के महत्व और ‘सेंगोल वेस्टिंग सेरेमनी’ की प्रामाणिकता को स्थापित करने के लिए 1947 से पहले के आधिकारिक रिकॉर्ड और मीडिया लेखों को खंगालने की दो साल की कवायद की, जिसमें टाइम पत्रिका का एक लेख भी शामिल है.

तुगलक पत्रिका में 5 मई, 2021 को छपे एस गुरुमूर्ति के एक लेख ने इस कवायद के लिए केंद्र सरकार को ट्रिगर किया, जिसमें कहा गया था कि एक तमिल संत द्वारा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया ‘सेंगोल’ स्वतंत्रता का प्रतीक था.

कुछ दिनों के भीतर, प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ पद्मा सुब्रह्मण्यम ने एस गुरुमूर्ति के लेख का अंग्रेजी-अनुवाद संस्करण प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा. उन्होंने पीएमओ को भेजे अपने पत्र में निवेदन किया था कि ‘सेंगोल-वेस्टिंग’ के एक प्रचलित, पवित्र और ऐतिहासिक समारोह को सार्वजनिक ज्ञान और इतिहास से बाहर रखा गया है और मोदी सरकार को 2021 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इसे सार्वजनिक करना चाहिए. इसने पीएमओ और संस्कृति मंत्रालय को ‘सेंगोल’ के महत्व को स्थापित करने के लिए पुराने रिकॉर्ड और मीडिया रिपोर्टों को खंगालने के लिए प्रेरित किया.

दो साल लंबी प्रक्रिया के बाद इलाहाबाद में मिला ‘सेंगोल’

अधिकारियों ने प्रतिष्ठित लेखकों की पुस्तकों, ​समाचार पत्रों में छपे उनके लेखों से इस संबंध में विवरण एकत्र किया और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उनके आवास पर ‘सेंगोल’ की प्रस्तुति के बारे में ऑनलाइन उपलब्ध जानकारियों पर ध्यान दिया. नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा से अनुरोध किया गया था कि पंडित नेहरू के निजी पत्रों में इस समारोह का कुछ संदर्भ या तस्वीरें उपलब्ध हैं या नहीं, इसकी जांच करें. इस अभ्यास के दौरान 25 अगस्त, 1947 को टाइम पत्रिका का एक लेख मिला, जिसने अपने ‘विदेशी समाचार’ खंड में ‘सेंगोल’ अनुष्ठान की विस्तृत रिपोर्ट दी थी.

नृपेंद्र मिश्रा ने 26 अप्रैल, 2022 को एक पत्र में पेरी एंडरसन द्वारा लिखित ‘द इंडियन आइडियोलॉजी’ नामक पुस्तक के साथ-साथ ताई योंग टैन और ज्ञानेश कुदैस्य द्वारा लिखित एक अन्य पुस्तक का विवरण सरकार को दिया, जिसका शीर्षक ‘द आफ्टरमाथ ऑफ पार्टीशन इन साउथ एशिया’ है. सरकार को डीएफ कराका की 1950 की पुस्तक भी मिली, जिसमें पुष्टि की गई थी कि ‘सेंगोल’ को तंजौर के पुजारियों द्वारा पवित्र संतों से शासक अधिकार प्राप्त करने की पारंपरिक भारतीय पद्धति के प्रतीक के रूप में पंडित नेहरू को सौंप दिया गया था. ‘सेंगोल वेस्टिंग सेरेमनी’ के संबंध में सरकार द्वारा पाए गए इसी तरह के अन्य प्रमाणों में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का दिसंबर 1955 का एक लेख, डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कोलिन्स की पुस्तक ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ और यास्मीन खान की पुस्तक ‘ग्रेट पार्टीशन: द मेकिंग ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान’ शामिल हैं.

‘सेंगोल’ को भारत की संसद में गौरवपूर्ण स्थान मिलेगा

इसी तरह 1947 की कई अन्य मीडिया रिपोर्टों ने भी इसकी पुष्टि की. DMK सरकार द्वारा प्रकाशित ‘हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती नीति नोट 2021-22 में भी 1947 के ‘सेंगोल’ समारोह का जिक्र किया गया था. DMK सरकार द्वारा 2021-22 में तमिलनाडु विधानसभा को प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है. केंद्र सरकार को आखिरकार 77 साल पुराना ‘सेंगोल’ इलाहाबाद के संग्रहालय में मिला, जिसे दशकों से एक अज्ञात स्थान पर संरक्षित रखा गया और नेहरू की ‘सोने की छड़ी’ के रूप में इसका उल्लेख किया गया था. अब अंतत: उसे दिल्ली के नए संसद भवन में अपना गौरवपूर्ण स्थान मिल जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नई संसद भवन के लोकसभा कक्ष में अध्यक्ष के आसन के ठीक सामने इसे स्थापित करेंगे.

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