यूएन की आतंकियों की लिस्ट में शामिल और तालिबान के ‘कमतर’ नेता मुल्ला हसन अखुंद अफगानिस्तान के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं. चरमपंथी समूह के कई गुटों के बीच मतभेदों ने अब तक युद्धग्रस्त राष्ट्र में सरकार के गठन को बाधित किया है.
तीन हफ्ते पहले काबुल पर तालिबान ने कब्जा कर लिया था. मुल्ला बरादर के नेतृत्व वाली तालिबान की दोहा इकाई, हक्कानी नेटवर्क, पूर्वी अफगानिस्तान से संचालित एक आतंकवादी संगठन और तालिबान का कंधार गुट में सत्ता को लेकर मतभेद हैं, जिसकी वजह से अफगानिस्तान में सरकार बनाने में देरी हो रही है.
सूत्रों के मुताबिक, नए फॉर्मूले के तहत, मुल्ला बरादर और मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला अखुंद के डिप्टी के रूप में काम कर सकते हैं. हक्कानी नेटवर्क के सिराज हक्कानी को भारत के गृह मंत्रालय के बराबर शक्तिशाली आंतरिक मंत्रालय का नेतृत्व करने के लिए चुना जा सकता है.
तालिबान के शीर्ष मौलवी और नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा को ‘सर्वोच्च नेता’ होने की संभावना है.
मुल्ला हसन अखुंद तालिबान के नेतृत्व परिषद, “रहबारी शूरा” के प्रमुख हैं और 2001 में अमेरिका के साथ युद्ध शुरू होने से पहले तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान में एक मंत्री के रूप में कार्य किया है.
ऐसी अटकलें हैं कि पिछले हफ्ते पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई प्रमुख के काबुल जाने के दौरान सहमति बनी थी. अब आईएसआई प्रमुख फैज हमीद अब इस्लामाबाद वापस आ गए हैं.
काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान के साथ बातचीत करने के बाद भी पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्ला अब्दुल्ला सहित देश के पूर्व नेताओं के लिए कोई भूमिका नहीं दिखाई दे रही है.