2024 चुनाव… दुनिया का अब तक का सबसे महंगा इलेक्‍शन, 2019 के मुकाबले दोगुना हो रहा खर्चा, आंकड़े उड़ा देंगे होश

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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav 2024) पिछले रिकॉर्ड तोड़ने और दुनिया का सबसे महंगा चुनावी आयोजन बनने की राह पर है. NGO सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) ने यह दावा किया कि इन लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है.

यह राशि 2019 के चुनावों में हुए खर्च से दोगुने से भी अधिक है. तब आम चुनावों में करीब 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. सीएमएस 35 वर्षों से चुनाव खर्च पर नजर रख रहा है. संस्‍थान के अध्‍यक्ष एन भास्‍कर राव ने कहा कि इस व्यापक खर्च में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और चुनाव आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सभी खर्च शामिल हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने की रेस में है. न्‍यूज एजेंसी पीटीआई के साथ इंटरव्‍यू में राव ने कहा कि उन्होंने प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपये से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया है, जिसमें चुनावी बांड के खुलासे और सभी चुनाव-संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है. शुरुआत में हमने अनुमान लगाया कि व्यय 1.2 लाख करोड़ रुपये होगा. हालांकि, चुनावी बांड हिस्सेदारी के खुलासे के बाद हमने इस आंकड़े को संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया है.

60 प्रतिशत चुनाव फंड अज्ञात सोत्र से…

बताया गया कि यह अनुमान मतदान की तारीखों की घोषणा से 3-4 महीने पहले हुए खर्च को कवर करता है. राव ने इस बात पर जोर दिया कि चुनावी बांड से परे विभिन्न माध्यमों से इस प्रक्रिया में पैसा आया. सोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया टिप्पणियों से भारत में राजनीतिक फंडिंग में “पारदर्शिता की महत्वपूर्ण कमी” का पता चला है. इसमें दावा किया गया है कि 2004-05 से 2022-23 तक, देश के छह प्रमुख राजनीतिक दलों को लगभग 60 प्रतिशत योगदान, कुल 19,083 करोड़ रुपये, अज्ञात स्रोतों से आया, जिसमें चुनावी बांड से प्राप्त धन भी शामिल था.

खर्च में नेताओं की खरीद-फरोख्त भी शामिल…

हालांकि, एडीआर ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए कोई संचयी व्यय अनुमान प्रदान करने से परहेज किया है. राव ने कहा कि चुनाव पूर्व गतिविधियां पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा प्रचार खर्च का अभिन्न अंग हैं, जिसमें राजनीतिक रैलियां, परिवहन, क्षेत्र और प्रभावशाली लोगों सहित कार्यकर्ताओं की नियुक्ति और यहां तक कि राजनीतिक नेताओं की विवादास्पद खरीद-फरोख्त भी शामिल है.

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