सर्वार्थ सिद्धि समेत 4 शुभ संयोग में जन्माष्टमी, क्या है लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव मुहूर्त? जानें गृहस्थों के लिए व्रत की तारीख

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महापर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस साल 6 सितंबर को जन्माष्टमी के दिन 4 शुभ संयोग बन रहे हैं.

उस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, रोहिणी नक्षत्र और बुधादित्य योग का सुंदर संयोग है. जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की रात हुआ था तो उस समय रो​हिणी नक्षत्र थी. हर साल जन्माष्टमी पर अष्टमी तिथि में रोहिण नक्षत्र का विचार करते हैं, उस समय में जन्माष्टमी मनाना बड़ा शुभ माना जाता है.

जन्माष्टमी 2023 पर बनेंगे ये 4 शुभ संयोग

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार इस वर्ष जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन है, वहीं रवि योग सुबह 06:01 बजे से सुबह 09:20 बजे तक बना है जबकि बुधादित्य योग भी पूरे दिन रहेगा. ये तीनों ही योग शुभ हैं. इसके अलावा रोहिणी नक्षत्र सुबह 09 बजकर 20 मिनट से प्रारंभ है, जो जन्माष्टमी के अगले दिन 7 सितंबर को सुबह 10 बजकर 25 मिनट तक है. रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा और उसमें ही व्रत का पारण भी होगा. इस साल रोहिणी नक्षत्र में ही लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव मनाया जाएगा.

गृहस्थों के लिए जन्माष्टमी व्रत: 6 सितंबर, बुधवार

इस्कॉन कृष्ण जन्माष्टमी: 7 सितंबर, गुरुवार

लड्डू गोपाल के जन्मोत्सव का मुहूर्त क्या है?

इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल के जन्मोत्सव का मुहूर्त रात 11:57 बजे से लेकर देर रात 12:42 बजे तक है. इस समय में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होगा. सोहर गाया जाएगा. स्नान कराने के बाद श्रृंगार होगा. पूजा, भजन, कीर्तन के साथ प्रसाद वितरण होगा.

कब करेंगे जन्माष्टमी व्रत का पारण?

आम जनमानस में जन्माष्टमी व्रत का पारण मुख्यत: दो प्रकार से करने की परंपरा है. व्रत का एक पारण जन्माष्टमी के प्रसाद वितरण के साथ होता है. व्रती प्रसाद खाकर व्रत का पारण कर लेते हैं, जबकि दूसरा पारण अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद किया जाता है. कुछ लोग अष्टमी तिथि के समापन के बाद ही जन्माष्टमी व्रत का पारण करते हैं. अब आपके घर पर जिस समय पारण करने की परंपरा है, आप उसका अनुसरण कर सकते हैं.

जन्माष्टमी पहला पारण समय: 6 सितंबर, देर रात 12:42 बजे के बाद,

जन्माष्टमी दूसरा पारण समय: 7 सितंबर, सुबह 06:02 बजे से होगा

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

भगवान विष्णु ने द्वापर युग में अपना श्रीकृष्ण अवतार लिया था. उस समय उन्होंने माता देवकी के गर्भ से उनकी 8वीं संतान के रूप में जन्म लिया. उनकी बाल लीलाएं, राधा के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम, गोसेवा, महाभारत के युद्ध का संचालन, गीता का उपदेश जैसी अनगिनत बाते हैं, जो उनके विराट व्यक्तित्व के कई पहलुओं को दर्शाते हैं. गीता के उपदेश से आज भी लोगों को मार्गदर्शन मिलता है.

जो जिस स्वरूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करता है, वह उस प्रकार से जन्माष्टमी का उत्सव मनाता है. हर साल जन्माष्टमी पर व्रत रखकर पूजा पाठ, भजन, कीर्तन आदि किया जाता है. संतानहीन दंपत्ति संतान सुख की प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं.

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