स्विगी-जोमैटो के जूं-जूं करते शेयर से समझिए बजट, 80 परसेंट टैक्स पेयर्स से ऑर्डर की आस और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज लेकिन..
सैलरी वाला झुनझुने से निराश चल रहा था. जब नया टैक्स रिजीम आया उस दिन तो गजब कन्फ्यूजन था. गफलत में बल्ले-बल्ले होने लगी. शाम तक समझ आया कि नहीं ये नया टैक्स रिजीम है जिसमें कोई 80-सी, हाउस रेंट वाली छूट नहीं है.
तब उत्साह फुस्स हो गया. फिर धीरे-धीरे न्यू टैक्स रिजीम को चमकाने का काम शुरू हुआ. देखते ही देखते सात लाख तक की इनकम टैक्स फ्री हो गई. फिर 72 परसेंट टैक्स देने वाले उस तरफ चले गए. आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्रांति कर दी. सात लाख की लिमिट को 12 लाख कर दिया. अब तो 80 परसेंट से ज्यादा सैलरी वाले इसी में आ जाएंगे. 75000 रुपए स्टैंडर्ड डिडक्शन जोड़ दें तो 12.75 लाख रुपए की सालाना इनकम टैक्स फ्री हो गई.
अब ये बात और है कि इससे एक रुपया भी ज्यादा हो गया तो स्लैब का चक्कर पड़ जाएंगे और 13 लाख की कमाई पर 75 हजार रुपये टैक्स देना होगा. मैंने भी हिसाब लगाया. पता चला ओल्ड टैक्स रिजीम अभी भी फायदेमंद है. हां, नए न्यू टैक्स रिजीम में जाने पर टैक्स सेविंग की कठिन प्रक्रिया से निजात मिल जाएगा. इसमें कोई शक नहीं कि 80 परसेंट टैक्स देने वाले फायदे में रहेंगे, जेब ढीली करेंगे तो इकोनॉमी का पहिया जोर से भागेगा. स्विगी-जोमैटो के शेयर इसीलिए तो भागे. मानों जो पैसा बचा रहे हैं वो खटाखट आज ही ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने वाले हैं.
इस लिहाज से बजट – 2025 खपत बढ़ाने वाला है. मिडिल क्लास का ध्यान अरसे बाद रखा गया है. लेकिन वित्त मंत्री ने बुनियाद नहीं छोड़ी. सरकार अगले साल भी 11 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा रेल, रोड, बंदरगाह, एनर्जी जैसे सेक्टर्स पर खर्च करेगी. इनकम टैक्स छूट से एक लाख करोड़ रुपए सरकारी खजाने में कम जमा होंगे लेकिन सरकारी खर्चे में कोई कमी नहीं होगी. इतिहास यही बताता है कि टैक्स में छूट देने पर टैक्स देने वाले बढ़ते जाते हैं. तो क्या पता, अगले साल टैक्स देने वालों की संख्या 10 करोड़ पहुंच जाए. कारण सिंपल है. विकसित भारत के लिए 8 परसेंट जीडीपी दर जरूरी है. अगर 2047 से पहले लक्ष्य हासिल करना है. और ऐसा होता है तो रोजगार के अवसर बनेंगे. इनकम टैक्स इनरलॉमेंट बढ़ेगा. एक बार डिमांड तेज हुई तो रियल एस्टेट, ऑटो, ट्रैवल, एफएमसीजी सब भाग पड़ेंगे. फिर इनमें काम करने वाले स्विगी-जोमैटो से और चटोर खाना मंगाएंगे.
बढ़ता फासला
इस बल्ले-बल्ले के बीच एक खाई बहुत चौड़ी होती हुई दिख रही है. टैक्स देने वालों और न देने वालों के बीच की. 140 करोड़ की आबादी में सिर्फ 8 करोड़ इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं. यानी आबादी के सात प्रतिशत से भी कम. इसमें भी पांच करोड़ जीरो टैक्स देने वाले हैं. मतलब सिर्फ रिटर्न फाइल करते हैं क्योंकि ऐसा करना लोन लेने समेत कई और बातों के लिए जरूरी है. 2021 में महुआ मोइत्रा ने सरकार से सवाल पूछा जिसके जवाब में ये बात सामने आई कि देश में 81 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी सालाना कमाई 10 लाख रुपए से ज्यादा है. पांच से दस लाख कमाने वाले 1.4 करोड़ लोग हैं. इस हिसाब से लगभग 2.5 करोड़ लोगों ने ही जेब से सरकार को कुछ दिया. उस हिसाब से तो अब डायरेक्ट टैक्स का खजाना भरने की जिम्मेदारी ज्यादा से ज्यादा एक करोड़ लोगों की है. ये चिंताजनक है. हमारे -आपके ऑफिसों के बाहर कई चाय-गुटखा वाले चार-पांच हजार हर रोज कमाकर दुकान समेटते हैं. ऐसे चोरों की संख्या करोड़ों में होगी. हमने अपने गांव, कस्बों और शहरों तक में देखा है कैसे डॉक्टर कैश में फीस लेते हैं. क्या आपको लगता है वो टैक्स के दायरे में आता होगा. घर बनवाओ तो नक्शा बनाने वाला इंजीनियर एक विजिट के पांच से दस हजार रुपए मांगता है. धीरे से बोलता भी है कि कैश ही दे दीजिए. और किसानों पर टैक्स की चर्चा कीजिए तो लगता है पाप कर रहे. कमाई कोई भी हो, टैक्स कुछ ही दें, ये ठीक नहीं है.
टैक्स नेट बढ़ाने की जरूरत
अब एक और आंकड़ा देखिए. हमारे देश की प्रति व्यक्ति आय लगभग एक लाख 72 हजार रुपए सालाना है. इसका मतलब प्रति व्यक्ति आय का सात गुना कमाने वाला भी टैक्स के दायरे से बाहर रहेगा. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. दिक्कत टैक्स नेट से है. 12 लाख 75 हजार रुपए से ज्यादा कमाने वाले सारे लोगों को इनकम टैक्स के दायरे में लाना चाहिए. अभी तो ये साफ लग रहा है कि 12.75 लाख रुपए से ज्यादा वाले कमर कस लें. ओल्ड रिजीम छोड़ दें और कुछ ज्यादा टैक्स देकर नए रिजीम में आ जाएं. इसकी झलक तो दिख ही रही है, शायद खाका अगले हफ्ते पेश होने वाले नए इनकम टैक्स विधेयक में दिख भी जाए. एक और आंकड़ा देखिए. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है. 2024 से 2029 जनवरी तक मिलता रहेगा. सरकार इस पर 11.80 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी. लगभग उतना ही जितना 2025-26 में सरकार के पूंजीगत खर्चों का बजट है. दो लाख करोड़ रुपए हर साल का खर्च इस पर है. अगर हमें इस तरह की ऐतिहासिक योजनाओं को जारी रखना है तो टैक्स नेट बढ़ाने पर फोकस करना ही होगा.