आतंकी कसाब को जेल में बिरयानी परोसी गई थी या नहीं? पूर्व IPS मीरां बोरवणकर ने अपनी किताब में किया खुलासा

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मुंबई हमले के आतंकी मोहम्मद अजमल कसाब को जेल में बिरयानी परोसी गई थी या नहीं, अब तक इस पर बहस जारी है. मगर अब खुद उस शख्स ने इस बहस पर विराम लगा दिया है, जिसकी देखरेख में ही आतंकी कसाब को फांसी दी गई थी.

1981 बैच की आईपीएस अधिकारी (रिटायर्ड) मीरां बोरवणकर ने अपनी किताब में आतंकी अजमल कसाब से जुड़े कई पहलुओं पर कई खुलासे किए हैं. पूर्व आईपीएस अधिकारी मीरां बोरवणकर ने अपनी हाल ही में आई किताब ‘मैडम कमिश्नर’ में दावा किया कि आतंकी अजमल कसाब को कभी भी जेल में बिरयानी नहीं परोसी गई.

अपने संस्मरण ‘मैडम कमिश्नर: द एक्स्ट्राऑर्डिनरी लाइफ ऑफ एन इंडियन पुलिस चीफ’ में पूर्व आईपीएस अधिकारी मीरां बोरवंकर लिखती हैं कि वह दौर आसान नहीं था और अजमल कसाब और याकूब मेमन की फांसी की घटनाएं उनके दिमाग में हमेशा के लिए अंकित हो गईं. मीरां बोरवंकर वही अधिकारी हैं, जिनकी देखरेख में 2012 में आतंकी कसाब और 2015 में आतंकी याकूब की फांसी दी गई थी. मीरा बोरवंकर पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के महानिदेशक के पद से रिटायर्ड हुई थीं.

आतंकी कसाब ने मटन बिरयानी की मांग की थी, इस खबर का बोरवंकर ने यह कहते हुए खंडन किया कि जेल में ऐसा कुछ भी नहीं परोसा गया था. साल 2015 में कसाब की फांसी के तीन साल बाद सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने स्वीकार किया था कि उन्होंने मुकदमे के दौरान आतंकवादी के पक्ष में केवल भावनात्मक माहौल को तोड़ने के लिए इसे गढ़ा था, जो कि आकार ले रहा था. पूर्व एडीजी (जेल) मीरां ने लिखा है कि शुरू में कसाब ने आक्रामक व्यवहार दिखाया मगर जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह जांच के दौरान शांत हो गया. मैं जब भी उससे पूछताछ करती थी तो वह या तो शांत रहता था या फिर मुस्कुराता रहता था.

उन्होंने अपनी किताब में उस घटना का भी जिक्र किया है, जिसमें अक्टूबर 2012 में महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री पाटिल ने उनसे यह डर व्यक्त किया था कि कुछ दुश्मन देश कानूनी प्रक्रिया में दखल कर सकते हैं और इसलिए कसाब की फांसी के समय बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए. उन्होंने किताब में लिखा, ‘फांसी से करीब 36 घंटे पहले आतंकी कसाब को मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारियों की एक टीम के साथ पूरी गोपनीयता के साथ भारी सुरक्षा वाले काफिले में मुंबई से पुणे ले जाया गया. उन्होंने बताया कि एक बार जब टीम ने कसाब को यरवदा जेल अधिकारियों को सौंपा गया था तब टीम के सदस्यों से उनके फोन ले लिए गए थे.’

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