गरुड़ पुराण के अनुसार गंगा में अस्थि विसर्जन क्यों है जरूरी? जानिए इसकी सही विधि और नियम!

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सनातन परंपरा में व्यक्ति के मर जाने के बाद अंत्येष्टि क्रियाएं की जाती हैं, जिनमें पिंडदान और अस्थि विसर्जन प्रमुख अनुष्ठान हैं. यह प्रक्रिया पंडित द्वारा संपन्न कराई जाती है, जिसमें कई धार्मिक नियमों का पालन किया जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि अस्थि विसर्जन की यह प्रक्रिया कैसे की जाती है और गरुड़ पुराण में इसके लिए क्या विधि बताई गई है.

गंगा नदी में अस्थि विसर्जन करने की मान्यता

हिंदू धर्म में गंगा नदी को पवित्र और मोक्षदायिनी माना जाता है. मान्यता है कि गंगा में अस्थि विसर्जन से मृतक की आत्मा को मोक्ष और स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गंगा स्वयं स्वर्ग से प्रवाहित होकर धरती पर आई हैं, इसलिए इसमें अस्थियां विसर्जित करने से आत्मा को मुक्ति का मार्ग मिलता है. गरुड़ पुराण के अनुसार अंतिम संस्कार के तीसरे, सातवें और नौवें दिन अस्थियों को एकत्रित करना चाहिए और दस दिनों के अंदर इन्हें गंगा में विसर्जित कर देना चाहिए. ऐसा करने से मृतक की आत्मा को नया मार्ग मिलता है, मोक्ष प्राप्त होता है और वह स्वर्ग लोक की ओर जाती है. शास्त्रों के अनुसार अमावस्या और पंचक के दौरान अस्थि विसर्जन नहीं करना चाहिए.

ऐसे मिलती है मृत आत्मा को शांति

हिंदू धर्म में दाह-संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. इसे करने के पीछे कई कारण हैं. यह दिवंगत आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है. साथ ही, यह प्रकृति से जुड़ाव को भी दर्शाता है. मृतक की आत्मा की शांति के लिए जीवित लोगों का यह कर्तव्य होता है कि वे इस अनुष्ठान को करें. यह परिवार के प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति का भी एक रूप है. अस्थियों को नदी में विसर्जित करने से मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, क्योंकि यह प्रक्रिया मृतक के भौतिक अवशेषों को प्राकृतिक दुनिया से जोड़ती है. अस्थि विसर्जन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व यह भी है कि यह मृत्यु के बाद भी जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है.

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