भारत में काबू में आई जनसंख्‍या वृद्धि, 2 फीसदी से भी कम हुई प्रजनन दर, क्‍या हैं फायदे और नुकसान

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साल 1950 में दुनिया भर की आबादी केवल ढाई अरब थी, जो अब आठ अरब का आंकड़ा पार कर गई है. गुजरे सात दशकों में दुनिया में हुआ जनसंख्या विस्फोट हर किसी को चौंका रहा है.

इसी से यह सवाल पैदा हुआ है कि धरती पर इंसानों की बढ़ती आबादी को बोझ माना जाए या वरदान की तरह देखा जाए. लेकिन यह हकीकत है कि जिन देशों में बढ़ती जनसंख्या एक समस्या है, उसमें भारत भी शामिल है. भारत इस समय दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. दुनिया की कुल आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है. यानी इस धरती पर हर छठा व्यक्ति भारतीय है.

भारत की आबादी 10 नवंबर, 2024 तक 1,455,591,095 है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मुताबिक, अप्रैल 2023 के अंत में भारत की आबादी 1,425,775,850 थी. इस तरह, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और चीन को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर आ गया है. लेकिन, एक स्टडी के मुताबिक भारत की आबादी बढ़ने की दर लगातार घटती जा रही है. आजादी के बाद 1950 में भारत में प्रजनन दर (प्रति महिला जन्म दर) 6.2 थी, जो 2021 में घटकर 2 फीसदी से भी कम पर पहुंच गई है. दावा किया गया है कि भारत में प्रजनन दर घटने का ये दौर लगातार जारी रहेगा. अगर ऐसा होना जारी रहा तो 2050 तक भारत में प्रजनन दर 1.3 रह जाएगी. साल 2054 में भारत की आबादी 1.69 अरब तक पहुंच सकती है. लेकिन उसके बाद घटने का सिलसिला जारी होगा और साल 2100 में भारत की आबादी घटकर 1.5 अरब रह जाएगी. प्रजनन दर में इस गिरावट के देश के तौर पर फायदे ही नहीं, नुकसान भी हैं.

दुनिया भर में घटेगी प्रजनन दर

यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक वैश्विक प्रजनन दर घटकर 1.8 पहुंच जाएगी. वहीं, 2100 तक वैश्विक प्रजनन दर 1.6 रह जाएगी. आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 1950 में 1.6 करोड़ बच्‍चे पैदा हुए थे. वहीं, 2021 में 2.2 करोड़ बच्‍चों ने भारत में जन्‍म लिया. अनुमान लगाया गया है कि घटती प्रजनन दर के कारण 2050 में भारत में 1.3 करोड़ बच्‍चे ही पैदा होंगे. 2021 में दुनियाभर में 12.9 करोड़ बच्चे पैदा हुए. यह आंकड़ा 1950 में दुनियाभर में जन्म लेने वाले 9.3 करोड़ बच्चों के मुकाबले ज्‍यादा हैं. वहीं, 2016 में जन्‍म लेने वाले 14.2 करोड़ बच्‍चों से कम है.

कम आय वाले देशों में उच्‍च प्रजनन दर

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज यानी जीबीडी 2021 फर्टिलिटी एंड फोरकास्टिंग कोलैबोरेटर्स के मुताबिक, 21वीं सदी में कई कम आय वाले देशों को उच्च प्रजनन दर का सामना भी करना पड़ेगा. लेकिन, ज्‍यादातर बच्चे दुनिया के सबसे गरीब क्षेत्रों में पैदा होंगे. अनुमान लगाया गया है कि 2100 तक दुनियाभर में जीवित जन्मों में कम आय वाले देशों की हिस्सेदारी 18 फीसदी से दोगुनी होकर 35 फीसदी पहुंच जाएगी. इससे जब तक सरकारें बढ़ती आबादी की चुनौतियों का हल निकालने की दिशा में काम नहीं करेगी, तब तक बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ता रहेगा.

प्रजनन से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रही दुनिया

डॉक्‍टर्स के मुताबिक, पूरी दुनिया में प्रजनन से जुड़ी कई चुनौतियां सामने आ रही हैं. अगर इनमें सुधार नहीं किया गया तो जोखिम बढ़ सकता है. फिलहाल जलवायु परिवर्तन और खान-पान में बदलाव के कारण सबसे ज्यादा चुनौतियां पेश आ रही हैं. इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन ने एक स्टडी में पाया कि गर्भावस्था बड़ी चुनौती बनती जा रही है. साथ ही नकारात्मक हालातों के कारण बाल मृत्यु दर का भी जोखिम बढ़ सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, ज्‍यादातर लोगों को लगता है कि बच्‍चे कम पैदा होंगे तो देश की आबादी घटेगी और फायदा होगा. ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि प्रजनन दर घटने के कई नुकसान भी हैं.

प्रजनन दर घटने के नुकसान?

शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगर बच्चे न हों तो किसी भी देश का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. एक शोध में महिलाओं की प्रजनन दर में कमी के कारण देश और समाज पर पड़ने वाले गंभीर नतीजों का आकलन किया गया है. एक स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर प्रजनन दर घटेगी तो आपको अपने आसपास बच्चों से ज्‍यादा बुजुर्ग नजर आने लगेंगे. इसका मतलब होगा कि घटती हुई प्रजनन दर वाले देशों में कुछ समय बाद श्रम बल की कमी महसूस की जाने लगेगी. वैश्विक प्रजनन दर घटने का मतलब होगा कि आधे से ज्‍यादा देशों में जन्म ​दर कम होना. जब भी किसी देश में प्रजनन दर 2.1 से नीचे आ जाती है तो जनसंख्या सिकुड़ना शुरू हो जाती है.

प्रजनन दर घटने के क्‍या हैं फायदे?

साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्‍ययन की रिपोर्ट कहती है कि अगर प्रजनन दर कम होगी तो महिलाओं की औसत उम्र में बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी. शोध के मुताबिक, कम प्रजनन दर का महिलाओं को सीधा फायदा मिल रहा है. इससे उनकी औसत उम्र में बढ़ोतरी हो रही है. शोध के मुताबिक, एक बच्‍चे को जन्‍म देने वाली महिलाएं 15 या ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं के मुकाबले औसतन छह साल ज्‍यादा जिंदा रहती हैं. इसके अलावा प्रजनन दर घटने से आबादी पर काबू होगा और सभी को बेहतर संसाधन उपलब्‍ध होंगे.

भारत में क्‍यों घट रही प्रजनन दर

भारत के लिए प्रजनन दर घटने के बड़े मायने हैं. इससे दुनियाभर के देशों के सामने कई चुनौतियां पेश आएंगी. लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण सामाजिक असंतुलन भी पैदा हो सकता है. हालांकि, भारत के लिए ये चुनौतियां कुछ दशक दूर हैं. प्रजनन दर घटने का बड़ा कारण पहले के मुकाबले अब देर से हो रही शादियां भी हैं. वहीं, देरी से शादी के कारण बच्चों की प्लानिंग में भी देरी प्रजनन दर में गिरावट का कारण बन रही है. वहीं, अब दंपति पहले के मुकाबले कम बच्चे पैदा कर रहे हैं.

घट रही है युवा आबादी

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शून्य से 14 साल वालों की आबादी में तेज गिरावट आ रही है. 1991 में इनकी जनसंख्या 31.2 करोड़ थी, जो 2001 में 36.4 करोड़, 2011 में 37.4 करोड़ हो गई. हालांकि, 2024 में यह घटकर 34 करोड़ हो गई है. 60 वर्ष से ज्यादा की आबादी की संख्या 24 साल में दोगुनी हो गई है. 1991 में इनकी संख्या 6.1 करोड़, 2001 में 7.9 करोड़, 2011 में 10.2 करोड़ और 2024 में यह 15 करोड़ हो गई है.

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