क्या लॉरेंस बिश्नोई मुंबई अंडरवर्ल्ड का नया डॉन? पढ़ें- ‘रावण’ से लेकर ‘डैडी’ तक की पूरी कहानी

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क्या लॉरेंस बिश्नोई अंडरवर्ल्ड का नया डॉन है? महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की बांद्रा जैसे भीड़भाड़ इलाके में सरेआम हत्या ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड की यादें ताजा कर दी हैं.

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गैंगस्टर और गैंगवार का लंबा इतिहास रहा है, जिसकी शुरुआत 1970 के दशक में हुई. करीब चार दशक तक करीम लाला, हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार से लेकर दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली और अमर नाइक ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर राज किया. हालांकि 90 का दशक बीतते-बीतते अंडरवर्ल्ड का लगभग सफाया हो गया. अब लॉरेंस बिश्नोई के रूप में सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक नई चुनौती और नया सवाल है?

लॉरेंस बिश्नोई के बहाने मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन पर एक नजर…

करीम लाला

करीम लाला (Karim Lala), मुंबई का शुरुआती डॉन था. 1911 में अफगानिस्तान में जन्मा लाला 1930 के दशक में मुंबई आया और शुरुआत में शहर के व्यस्त मनी-लेंडिंग बाजार में काम किया. समय के साथ, उसने अपनी पहुंच बढ़ाई और अवैध जुआ और प्रोटेक्शन रैकेट्स का प्रमुख खिलाड़ी बन गए. धीरे-धीरे उसके ‘पठान गैंग’, ने शहर के तस्करी का एक बड़ा हिस्सा, खासकर दक्षिण मुंबई को अपने कब्जे में ले लिया. वास्तव में करीम लाला (Karim Lala) ने ही मुंबई के अंडरवर्ल्ड को तस्करी के जरिये पैसा कमाने का रास्ता दिखा. करीम लाला के उदय के साथ ही मुंबई में एक तरीके से संगठित अपराध की शुरुआत हुई. करीम लाला की इमेज रॉबिनहुड जैसी थी. वह अपनी संपत्ति का एक हिस्सा जरूरतमंदों में बांटता था और इसके जरिये मुंबई पर पकड़ बनाई.

वरदराजन मुदलियार

1940 के दशक की शुरुआत में तमिलनाडु से मुंबई आने वाले मुदलियार ने अपने करियर की शुरुआत मुंबई के डॉक पर एक साधारण कुली के रूप में की थी. यहीं से उन्होंने अपना साम्राज्य खड़ा किया. शुरुआत सोने और इलेक्ट्रॉनिक्स की तस्करी से की. उन दिनों इन वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध था और काले बाजार में अत्यधिक कीमत पर बिकती थीं. मुदलियार मुंबई की तमिल आबादी के बीच खासा मशहूर था. दक्षिण के लोगों की रुपये-पैसे से मदद से लेकर नौकरी तक दी. बदले में, तमिल उन्हें एक रक्षक के रूप में देखते थे. मुदलियार ने 1960 के दशक से लेकर 1970 के दशक तक अंडरवर्ल्ड पर राज किया. मुंबई के धारावी में तमिल समुदाय आज भी ‘वर्धा भाई’ के लिए विशेष स्थान रखता है. 1980 के दशक में जब कानून का दबाव बढ़ा तो मुदलियार चेन्नई चले गए और वहीं 1988 में मौत हो गई. मुदलियार के जाने के बाद अंडरवर्ल्ड में गैंगस्टरों की नई पीढ़ी का रास्ता साफ हुआ.

दाउद इब्राहिम

1955 में महाराष्ट्र के कोंकण में जन्मा दाऊद इब्राहिम छोटे-मोटे अपराध से शुरुआत की.1980 के दशक तक, वह शहर का सबसे शक्तिशाली गैंगस्टर बन गया और करीम लाला से लेकर वरदराजन मुदलियार जैसे पुराने डॉन को पीछे छोड़ दिया. दाउद के गैंग का नाम डी-कंपनी था. उसका गिरोह सोना और इलेक्ट्रॉनिक्स की तस्करी से लेकर ड्रग सिंडिकेट और अंतरराष्ट्रीय हथियारों के सौदों तक हर चीज में शामिल था. साल 1993 के मुंबई बम ब्लॉस्ट में दाऊद का नाम आया, जिसमें 250 से अधिक लोग मारे गए. इसके बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उसे तलाशने लगीं.

अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के रडार पर भी. माना जाता है भारत से भागकर दाऊद ने पाकिस्तान में शरण ली है और अब वहीं से अपने नेटवर्क को चलाता है.

अमर नाइक

जब दाऊद देश छोड़कर भाग गया, तो अंडरवर्ल्ड में उसकी जगह लेने के लिए गैंगस्टर्स के बीच होड़ मच गई. इनमें से सबसे कुख्यात था अमर नाइक, जो मुंबई की झुग्गी बस्ती से ताल्लुक रखता था. उसके गैंग ने वसूली से लेकर जमीन हड़पने और मुख्य रूप से कॉन्ट्रैक्ट किलिंग की शुरआत की. उसकी क्रूरता के कारण उसके गैंग के सदस्य उसे ‘रावण’ कहते थे. नाइक का शासनकाल छोटा लेकिन हिंसक था. साल 1996 में नाइक एक मुठभेड़ में मारा गया.

अरुण गवली

मुंबई के अंडरवर्ल्ड में अरुण गवली (Arun Gawli) ने एक नए तरह की शुरुआत की. अपराध से राजनीति में आने की. गवली ने 1980 के दशक में अमर नाइक गैंग के साथ अपराध की दुनिया में कदम रखा. फिर अपना खुद का गैंग बनाया और सेंट्रल मुंबई के बायकुला, परेल, सात रास्ता और लालबाग जैसे इलाकों में अपनी पहचान बनाई.

अपने समर्थकों के बीच ‘डैडी’ के नाम से मशहूर गवली ने 1990 के दशक में राजनीति में कदम रखा और महाराष्ट्र विधानसभा में जी हासिल की. अखिल भारतीय सेना नामक एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई, जिसे स्थानीय मराठी जनता का समर्थन मिला. गवली को 2008 में हत्या का आरोप का दोषी ठहराया गया.

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