कब रखा जा रहा करवा चौथ व्रत? इस सरल विधि से करें पूजा, पढ़ें पौराणिक कथा

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पति की लम्बी उम्र की मंशा से किया जाने वाला करवा चौथ का व्रत इस वर्ष 1 नवंबर 2023 को बुधवार के दिन रखा जाएगा. करवा चौथ व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है.

इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है और करवा चौथ की कथा सुनी जाती है. इस व्रत को कुंवारी कन्या भी रखती हैं. वे अच्छे वर की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा आज हमें बता रहे हैं करवा चौथ पूजन विधि और व्रत कथा के बारे में.

करवा चौथ पूजन विधि

करवा चौथ की खास पूजा शाम को के चंद्रोदय होने के बाद की जाती है. पूजा और व्रत की विधि के अनुसार करवा चौथ के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें.

फिर इस मंत्र का जाप करें ‘‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये’.

इसके बाद दोपहर में पूजा की तैयारी करें.

वैसे तो आजकल प्रिंट किये हुए कैलेंडर आते हैं लेकिन अगर आपके पास नहीं हैं तो आप इसके लिए घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनायें. फिर चावल को पीसकर इससे फलक पर करवा का चित्र बनाएं.

इस रीति को करवा धरना कहा जाता है.

शाम को फलक वाले स्थान पर जमीन पर चौक लगाएं और मां पार्वती और शिव की कोई ऐसी फोटो लकड़ी के आसन पर रखें, जिसमें भगवान गणेश मां पार्वती की गोद में बैठे हों.

अब पूजा की थाली सजाएं और थाली में दीपक, सिन्दूर, अक्षत, कुमकुम, रोली तथा चावल की बनी मिठाई या सफेद मिठाई रखें.

इसके बाद कोरे करवा में जल भरकर पूजा में रखें और मां पार्वती को श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं. इसके बाद मां पार्वती भगवान गणेश और शिव के साथ चन्द्रदेव की अराधना करें.

फिर करवा चौथ व्रत कथा सुनें या पढ़ें.

चंद्रमा के निकलने पर छलनी से या जल में चंद्रमा को देखें.

फिर चंद्रमा की पूजा करें और उनको अर्घ्य दें.

उसके बाद अपने पति की लंबी आयु की कामना करें.

इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर या निवाला खाकर अपना व्रत संपन्न करें.

फिर अपने बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें.

करवा चौथ की पौराणिक कथा

करवा चौथ की प्रचलित कथा वीरावती और उसके सात भाइयों की है, जो इस प्रकार है. प्राचीन काल में इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी लीलावती से उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी. वीरावती के युवा होने पर उसका विवाह विधि-विधान के साथ कर दिया गया.

जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई, तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ बड़े प्रेम से करवा चौथ का व्रत शुरू किया. लेकिन भूख-प्यास से वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई. बहन को बेहोश देखकर सातों भाई व्याकुल हो गए और इसका उपाय खोजने लगे. उन्होंने अपनी लाड़ली बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय होने की सूचना दी, तो उसने विधिपूर्वक पूजन और अर्घ्य देकर भोजन कर लिया. ऐसा करने से उसके पति की मृत्यु हो गई. अपने पति के मृत्यु से वीरावती व्याकुल हो उठी और उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया.

उसी रात को इंद्राणी पृथ्वी पर आयीं और ब्राह्मण पुत्री ने उनसे अपने दु:ख का कारण पूछा. इस पर इंद्राणी ने बताया कि तुमने करवा चौथ पर वास्तविक चंद्रोदय होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया. अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो.

मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी. वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि के अनुसार किया, तो इंद्राणी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रसन्न होकर चुल्लू भर पानी उसके पति के मृत शरीर पर छिड़क दिया. ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो उठा और घर आ गया. इसके बाद वीरावती अपने पति के साथ वैवाहिक सुख भोगने लगी. समय के साथ उसे पुत्र, धन, धान्य और पति की दीर्घायु का लाभ मिला.

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