सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा नोटबंदी का फैसला, 10 बिंदुओं में समझें पूरा मामला

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में केंद्र सरकार के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा.

हम आपको डिमोनेटाइजेशन के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसके पक्ष में सुनाए गए फैसले को, 10 आवश्यक बिंदुओं में समझा रहे हैं…

नवंबर 2016 की शुरुआत में रिट याचिकाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में विमुद्रीकरण की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. दिसंबर 2016 में, शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले के महत्व और दूरगामी प्रभावों पर विचार करते हुए इस मुद्दे को एक बड़ी संविधान पीठ के पास भेज दिया.

न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि केंद्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती थी, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और केंद्र सरकार के बीच परामर्श हुआ था. न्यायमूर्ति एसए नजीर 4 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

अदालत ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना, जिसमें उच्च मूल्य के करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले की घोषणा की गई थी, को अनुचित नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह कार्यपालिका की आर्थिक नीती का हिस्सा था. शीर्ष अदालत ने ‘निर्णय लेने की प्रक्रिया’ के आधार पर नोटबंदी के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को रद्द कर दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि नोटबंधी के निर्णय के पीछे का उद्देश्य हासिल किया गया या नहीं. न्यायमूर्ति एसए नजीर, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध है, आनुपातिकता के परीक्षण को संतुष्ट करती है.’

जस्टिस गवई ने कहा कि आरबीआई अधिनियम की धारा 2 (26) के तहत केंद्र को मिली शक्ति का प्रयोग बैंक नोटों की सभी श्रृंखलाओं पर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच विचार-विमर्श हुआ था.

निर्णय लेने की प्रक्रिया को गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार से आया था. इसके अलावा, अधिसूचना किसी भी दोष से ग्रस्त नहीं है, अधिसूचना अनुचित नहीं है.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र की शक्तियों के बिंदु पर बहुमत के फैसले से अलग रहीं. अपने असहमतिपूर्ण फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जस्टिस गवई के फैसले में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि सिर्फ आरबीआई का बोर्ड ही नोटबंदी की सिफारिश कर सकता है.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि विमुद्रीकरण के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों का प्रयोग एक विधायी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना चाहिए. नागरत्न ने कहा, ‘संसद को अक्सर एक लघु राष्ट्र के रूप में संदर्भित किया जाता है.इस तरह के महत्व के विषय पर इसे अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है.’

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि केंद्र सरकार की शक्तियां विशाल होने के कारण, इसे पूर्ण उद्देश्य में प्रयोग किया जाना चाहिए. विमुद्रीकरण के संबंध में चर्चा की आवश्यकता होती है और इसे लागू करने के लिए अध्यादेश या कानून की आवश्यकता होती है.

आपको बता दें कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर, 2022 की शाम 8 बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा की थी कि तत्काल प्रभाव से 500 और 1000 रुपए के नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहे. यानी इनकी वैधता समाप्त होती है.

फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने ट्वीट किया, ‘एक बार माननीय उच्चतम न्यायालय ने फैसला दे दिया, तो हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं. हालांकि, यह इंगित करना आवश्यक है कि शीर्ष अदालत की 5 जजों की संविधान पीठ ने ‘पूर्ण बहुमत’ से नोटबंदी के निर्णय को बरकरार नहीं रखा है; न ही 4 जजों के बहुमत के फैसले ने यह निष्कर्ष निकाला है कि नोटबंदी के जरिए घोषित उद्देश्यों को प्राप्त किया गया था.

पी. चिदंबरम ने कहा, ‘वास्तव में, जजों ने इस सवाल से दूरी बना ली है कि क्या नोटबंदी के उद्देश्यों को प्राप्त किया गया था.’ आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि विमुद्रीकरण की कवायद एक ‘सुविचारित’ निर्णय था और फेक करेंगी, टेरर फंडिंग, ब्लैक मनी और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था. शीर्ष अदालत का फैसला 8 नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित विमुद्रीकरण अभ्यास को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं के एक बैच पर आया.

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