हेमंत सोरेन की सदस्यता पर सस्पेंस बरकरार, राज्यपाल के फैसले में देरी पर सीएम के पास क्या हैं ऑप्शन

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लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ डॉ सुभाष कश्यप का कहना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता के संबंध में फैसला लेने के लिए राज्यपाल के लिए कोई समय नियत नहीं है।

हालांकि राज्यपाल को उचित समय के अंदर ही इस पर अपना निर्णय दे देना चाहिए। राज्यपाल उचित समय के अंदर ऐसा नहीं करते हैं तो प्रभावी पक्ष हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शरण ले सकते हैं। कोर्ट इस संबंध में राज्यपाल को उचित समय निर्धारित करते हुए निर्णय देने का निर्देश दे सकता है।

मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता के फैसले पर हो रहे विलंब से उपजे सवाल पर हिन्दुस्तान ने डॉ. सुभाष कश्यप से बातचीत की। राज्यपाल कब तक इस संबंध में फैसला दे सकते हैं, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इसके लिए कोई समय नियत नहीं है, पर राज्यपाल को इसे लंबा नहीं खींचना चाहिए। डॉ कश्यप ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के मंतव्य पर राज्यपाल को निर्णय लेने की बाध्यता है। विधानसभा के किसी सदस्य की सदस्यता पर अंतिम फैसला राज्यपाल का होता है।

चुनाव आयोग ने मंतव्य क्या दिया और राज्यपाल ने इसपर क्या फैसला लिया, इसपर निर्णय आने के बाद ही कानूनी पहलुओं पर चर्चा की जा सकती है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के मंतव्य आने के बाद राज्यपाल के फैसले का सबको बेसब्री से इंतजार है। सत्तारूढ़ दल इसे लेकर लगातार राज्यपाल से आग्रह कर रहा है कि इसे जल्द सार्वजनिक किया जाये। यूपीए नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल भी इस विषय को लेकर पिछले दिन राज्यपाल से मिलकर मांग पत्र सौंपा था।

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