मैरिटल रेप का अपराधीकरण किए जाने से महिला के ‘ना’ कहने के अधिकार का होगा सम्मान

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दिल्ली हाईकोर्ट को सोमवार को बताया गया कि मैरिटल रेप (Marital Rape) का अपराधीकरण किए जाने से पत्नी के ‘ना’ कहने के अधिकार का सम्मान होगा और यह स्वीकार करने के बारे में होगा कि विवाह अब सहमति को अनदेखा करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है।

हाईकोर्ट के समक्ष मैरिटल रेप को अपराध घोषित की मांग पर अपना पक्ष रखते हुए गैर सरकारी संगठन आरटीआई फाउंडेशन ने यह दलील दी है।

जस्टिस राजीव शकधर और सी.हरि. शंकर की बेंच के फाउंडेशन की ओर से वकील करुणा नंदी ने कहा कि जब तक मैरिटल रेप एक स्पष्ट अपराध नहीं बन जाता, तब तक इसे माफ किया जाएगा। नंदी ने बेंच को बताया कि यह मामला एक विवाहित महिला के साथ उसकी मर्जी के बगैर जबरन शारीरिक संबंध से इनकार करने के नैतिक अधिकार के बारे में है। साथ ही कहा कि यह पत्नी के ना कहने के अधिकार का सम्मान करने और यह स्वीकार करने के बारे में है कि विवाह अब सहमति को अनदेखा करने का एक सार्वभौमिक लाइसेंस नहीं है।

उन्होंने बेंच को बताया कि अदालत के फैसले की नियामक शक्ति सभी के लिए मान और सम्मान के पोषित संवैधानिक लक्ष्य को साकार करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगी। वकील ने संविधान को परिवर्तनकारी बताते हुए कहा कि इसमें बदलाव से महिलाओं को सार्वभौमिक मताधिकार और वोट देने, पूजा करने, यौन उत्पीड़न के बिना काम करने और तीन तलाक के खिलाफ अधिकार प्राप्त हुआ है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस हरिशंकर ने दोहराया कि आईपीसी की धारा 375 का अपवाद 2 पक्षों के बीच संबंधों के संदर्भ में गुणात्मक अंतर पर आधारित है और जरूरी नहीं कि सहमति पर हो। संविधान के अनुच्छेद 14 के परीक्षण का निर्धारण करते समय अपवाद 2 के अंतर को अपवाद के पीछे के विधायी उद्देश्य पर ही परखा जाना है, न कि दुष्कर्म कानून के पीछे की वस्तु पर। हाईकोर्ट ने इस बारे में वकील नंदी से समुचित दलील देने को कहा। मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर दाखिल कई संगठनों की याचिकाओं पर उच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है।

केंद्र को दलील के लिए तैयार रहने को कहा

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील को भी अपनी दलीलें आगे बढ़ाने के लिए तैयार रहने को कहा, क्योंकि अन्य सभी पक्ष अपनी दलीलें पूरी करने की कगार पर है। कोर्ट ने सरकार की ओर से वकील मोनिका अरोड़ा से जानना चाहा कि क्या उनके पास 2017 में सरकार द्वारा मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग के विरोध में दाखिल हलफनामे को वापस लेने का कोई निर्देश है या नहीं। बेंच ने कहा कि आपको समुचित जवाब के साथ वापस आने की जरूरत है।

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